तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)
* सीधी बिजाई धान क्रांतिकारी संरक्षण/टिकाऊ कृषि तकनीक *
* पर्यावरण हितेषी संरक्षण कृषि तकनीक * भूजल संरक्षण- ग्रीन हाउस गैसें का कम विसर्जन- सुगम फसल अवशेष पराली प्रबंधन! * किसान हितेषी टिकाऊ खेती तकनीक * एक तिहाही भूजल सिचाई, खेती की लागत, श्रम, डीज़ल, बिजली आदि की बचत * झंडा रोग मुक्त फसल व पूरी पैदावार ! फसल विविधिकरण किसान हितेषी वैकल्पिक फसल चक्र से ही सम्भव है! वर्षा ऋतु में आधा प्रदेश जल भराव ग्रस्त होने से, धान फसल का कोई व्यवहायरिक विकल्प नही है। सिवाय भूजल बर्बादी वाली धान की रोपाई पर, क़ानूनी प्रतिबंध 15 जुन की बजाय पहली जुलाई तक बढाकर, भूजल व खेती लागत बचत वाली तर-वत्तर सीधी बिजाई धान तकनीक को प्रोत्साहन दिया जाए। वैसे भी धान फसल किसान हितेषी (40,000 रूपये/एकड लाभ) होने के साथ-2, राष्ट्रहित मे भी है जो भारत की खाध्य सुरक्षा और 63,000 करोड रूपये वार्षिक निर्यात भी सुनिश्चित करती है ! धान फ़सल से लगातार हो रही भूजल बर्बादी एक गंभीर समस्या है लेकिन लाइलाज नही है। ज़िसे किसान हितेषी व वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित “तर- वत्तर सीधी बिजाई धान" तकनीक को अपनाकर आसानी से हल किया जा सकता है। जो पिछले वर्ष पंजाब में लगभग सात लाख हेक्टर (यानि प्रदेश के कुल धान क्षेत्र के चोथाई हिस्से) और हरियाना मे लगभग 2 लाख हेक्टर भूमि पर सफलता से बहुत बड़े स्तर पर अपनायी गई और लगभग 28 किवंटल प्रति एकड़ की दर से रोपाई धान के बराबर ही पैदावार मिली। तर-वत्तर सीधी धान तकनीक अपनाने से रोपाई धान के बेकार झंझटों (बुआई से पहले खेत में पानी खड़ा करके पाड़े काटना/ कद्दु करना, पौध बोना, उखाड़ना और फिर से लगाना और तीन महीने खेत में पानी खड़ा रखना आदि) से मुक्ति मिलती है और फसल का झंडा/बकानी रोग से भी प्रभावी बचाव होता है । तर- वत्तर सीधी बिजाई धान तकनीक मे बुआई मूँग व गेंहू आदि फ़सलो की तरह बिल्कुल आसान है। जिसे इच्छुक किसान निम्नलिखित विधि अपनाकर, आने वाली पीढ़ियों के भूजल-पर्यावरण संरक्षण और खेती की लागत में भारी बचत कर सकते है। ये भी पढ़े: धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका* तर-वत्तर सीधी बीजाई धान तकनीक *
1) तर-वत्तर सीधी बीजाई धान की किस्मे
धान की सभी किस्मे कामयाब है!2) बुआई का समय
25 मई से 5 जुन तक अच्छी नमी वाले तर- वत्तर खेत मे करे (मानसुन आगमन से एक महीना पहले बुआई करे) यानि सीधी बीजाई धान की बुआई रोपाई धान की पौध नर्सरी की बुआई के समय पर ही करनी है !3) सीधी बिजाई धान के लिए खेत की तैयारी
पहले खेत को समतल बनाए, फिर गहरी सिचाई, जुताई व तर-वत्तर (अच्छी नमी) तैयार खेत मे शाम के समय बुआई करे !4) बीज की मात्रा व उपचार
बुआई से पहले बीज उपचार बहुत ज़रुरी है ! एक एकड के लिए 8 किलो बीज को 12 घंटे 25 लीटर पानी मे डूबोये, फिर 8 घंटे छाया मे सुखाकर, 2 ग्राम बाविस्टीन और एक मि.ली. क्लोरोपायरीफास प्रति किलो बीज उपचार करे !5) सीधी बिजाई धान की बुआई का तरीका
लाईन से लाईन की दूरी : 8-9 इंच , बीज की गहराई: मात्र एक इंच रखे! बुआई बीज मशीन के ईलावा छींटा विधि से भी हो सकती है ! बुआई के बाद खेत की नमी बचाने के लिए हलका पाटा(सुहागा) लगाये!6) खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार ज़माव रोकने को, बुआई के तुरंत बाद 1.5 लीटर पेंडामेथेलीन प्रति एकड 200 लीटर पानी मे छिडकाव ज़रूर करे और आवश्कता पड़ने पर 20- 25 दिन बाद 100 लीटर पानी प्रति एकड मे 100 मि. ली. नामिनी गोल्ड (बिस्पाईरीबेक सोडीयम), या 400 मि.ली. राईस स्टार (फेनोक्सापरोप पी ईथाइल) या 8 ग्राम अलमिक्स (क्लोरीम्यूरान ईथाइल मेटसल्फूरान मिथाइल) या 90 ग्राम कौंसील एकटीव (ट्राईमाफोन 20: एथोक्सीसल्फूरान 10) य़ा 250 ग्राम 2,4- डी 80 प्रतिशत सोडीयम साल्ट का छिडकाव करे!7) सीधी बिजाई धान की सिचाई
पहली सिचाई देर से 21 दिन के बाद और बाद की सिचाई 10 दिन के अंतराल पर गीला - सुखा प्रणाली से वर्षा आधारित करे ! बुआई के बाद अगर पहले सप्ताह मे बे-मौसम वर्षा से भूमि की ऊपरी सतह पर करंड (मिट्टी सख्त हो), तो तुरंत हलकी सिचाई करे वर्ना धान के उगे नये पौधे भूमि की सतह से बाहर नही निकल पायेंगे !ये भी पढ़े: धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी
8) खाद की मात्रा
रोपाई धान की अनुमोदित दर और विधि से ही करे ! धान फसल मे प्रति एकड सामान्यता 40 किलो नाईट्रोजन, 16 किलो फासफोरस और 8-10 किलो पोटाश की ज़रूरत होती है!नाईट्रोजन की एक तिहाही और फासफोरस की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करे, जो एक बेग डी.ए. पी. प्रति एकड से पूरी हो जाती है! यूरिया और म्यूरेट आफ पोटाश (MOP) उर्वरको का प्रयोग मशीन के खाद बक्से मे नही रखना चाहिए! इन उर्वरको का प्रयोग टाप ड्रेसिंग के रुप मे पहली सिचाई यानि 21दिन बाद करना चाहिए, उसी समय 10 किलो ज़िंक सल्फेट प्रति एकड भी डालना चाहिए ! इस विधि से ऊगाई धान फसल की शुरुवाती अवस्था मे अक्सर , आयरन की कमी से पौधो मे पीलापन देखा जाता है उसके लिए, एक प्रतिशत आयरन सल्फेट का छिडकाव एक सप्ताह अंतराल पर दो बार करे ! फसल मे बालिया निसरने पर एक किलो घूलनशील इफको उर्वरक 13:0:45 प्रति एकड छिडकाव करे !9) कीट-बिमारीया प्रबंधन
रोपाई धान की अनुमोदित दर और विधि से ही करे, लेकिन ध्यान रखे कि रसायनिक दवायो का प्रयोग अनुमोदित दर से ज्यादा कभी नही करे ! तने की सुंडी (गोभ के कीडे) के 25-35 दिन के फसल अवस्था पर 8 किलो कारटेप रेत मे मिलाकर तथा पत्ता लपेट/ तना छेदक के लिए 200 मि .ली . मोनोक्रोटोफास या कलोरोपायरीफास या 400 मि .ली. क्वीनलफास 100 लीटर पानी मे प्रति एकड प्रयोग करे! धान निसरने के समय, ह्ल्दी रोग या ब्लास्ट से बचाव के लिए 200 ग्राम कार्बेंडाज़िम या प्रोपीकानाजोल (टिलट) 200 लीटर पानी प्रति एकड छिडकाव करे ! शीट ब्लाईट के लिए 400 मि. ली. वैलिडामाईसिन (अमीस्टार/लस्टर आदि) 200 लीटर पानी प्रति एकड छिडकाव करे ! फसल मे दीमक की शिकायत होने पर , एक लीटर कलोरोपायरीफास प्रति एकड सिचाई पानी के साथ चलाये !10) सीधी बीजाई तकनीक के बारे मे सावधानिया
- इस विधि से बोयी गई फसल रोपाई धान के मुकाबले पहले 40 दिन हलकी नजर आयेंगी, इसलिये किसान होसला बनाए रखे! - सीधी बुआई धान खारे पानी और सेम व लवनीय भूमि मे खास सफल नही है ! ऐसे क्षेत्रो मे किसान रोपाई धान ही लगाये! - 15 जुन के बाद धान की सीधी बिजाई नही करे और तब रोपाई विधि से धान की खेती फायदेमन्द रहेंगी ! -बुआई समय पर कम तापमान व फसल पकाई समय पर मानसुन वर्षा के कारण साठी धान (मार्च-अप्रेल बुआई) मे सीधी बीजाई तकनीक कामयाब नही है !11) सुगम पराली (फसल अवशेष) प्रबंधन
सीधी बिजाई धान फसल आमतौर पर रोपाई धान के मुकाबले 7-10 दिन पहले पकती है ज़िससे किसानो को पराली प्रबंधन मे धान कटाई के बाद ज्यादा मिलने से भी पराली प्रबंधन मे सहायता मिलती है ! इस विधि मे किसान जल्दी पकने वाली कम अवधी (125 दिन) की किस्मो पूसा बासमती- 1509, पी.आर -126 आदि की खेती से, धान फसल की कटाई सितम्बर महीने मे कर सकते है! ज़िससे फसल अवशेष (पराली) को भूमि मे दबाकर, गेंहू फसल की बुआई से पहले ढ़ेंचा या मूँग की हरी खाद के लिए फसल ली ज़ा सकती है! जो भूमि ऊर्वरा शक्ती बढाने और पराली जलाने से उत्पन होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने मे भी रामबाण साबित होगी !डा. वीरेन्द्र सिह लाठर , पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नयी दिल्ली drvslather@gmail.com
06-Apr-2022